ग्रीन हाउस में पराजीनी दलहनी फसलों का प्रबंधन (Management of transgenic pulses crops in greenhouse) | Agriculture | Green House | Pulses | Agriculture in India !




ग्रीन हाउस में पराजीनी  दलहनी फसलों का प्रबंधन (Management of transgenic pulses crops in greenhouse)

Malkhan Singh, Technical Officer (IIPR)

Overview (अवलोकन)



देश की बढ़ती हुई आबादी , गरीबी , भुखमरी को कम करने के लिए जैव प्रौद्योगिकी का एक प्रयास नई हरित क्रान्ति को जन्म दे सकता है । अगर ये प्रयास सफल हुआ , तो देश की गरीबी एवं भुखमरी समाप्त हो जायेगी , जैव प्रौद्योगिकी का सफलतम प्रयोग जो दलहनी फसलों पर किया जा रहा है , इसका तात्पर्य यह है कि पौधों की नई कीट एवं रोग प्रतिरोधक किस्में तैयार करके इनकी पोषण एवं उत्पादन क्षमता में वृद्धि करना है । जैव प्रौद्योगिकी एक ऐसी तकनीक है जिसके द्वारा हम जीन में फेर बदल करके दलहनी फसलों का उत्पादन बढ़ा सकते है । हमारे देश में भी पराजीनी फसलों के अध्याय खुल चुके हैं । प्रकृति जो करिश्मा लाखों साल में कर पाती थी , वह
जेनेटिक इंजीनियरिंग के दम पर पलक झपकते सम्भव हो चला है । इधर अंधा - धुन्ध कीटों पर काबू पाने के लिए कीटनाशकों का प्रयोग सिर - दर्द ही नहीं , जान लेवा बन गया है , पर अब ऐसी पराजीनी फसलें तैयार की जा रही है , जिनके पास कीड़े फटकेंगें ही नहीं । इनमें विषाक्तता पैदा करने वाली जीन निकाल कर खाद्य फसलों में पहुंचा दिया जा रहा है । जो मानव को तो नुकसान नहीं पहुँचाते हैं , मगर हानिकारक कीटों का हाजमा बिगाड़ देते हैं । रोचक बात यह है , कि ये जहरीले जीन्स का मित्र कीटों पर कोई असर नहीं पड़ता है । अभी तक भारतीय वैज्ञानिकों ने बैंगन , टमाटर , पत्ता गोभी , धान , कपास एवं दलहनी में भी  बीटी जीन डालकर महत्वपूर्ण परीक्षण किये हैं । इन सभी पर पराजीनी फसलों पर सफलतम परीक्षण करने के लिए एक अच्छे ग्रीन हाउस ( इनवायरमेंट कन्ट्रोल चैम्बर ) की आवश्यकता पड़ती है ।

ग्रीन हाउस की आवश्यकता (Requirement of Green House):



पराजीनी फसलों पर जैव प्रौद्योगिकी खुले मैदानों एवं खेतों पर किया जाना गैर कानूनी है और भारत सरकार द्वारा पूर्ण प्रतिबन्धित है । अतः ऐसे परीक्षणों को करने के लिए एक अच्छे ग्रीन हाउस ( इनवायरमेंट कन्ट्रोल चैम्बर ) की आवश्यकता पड़ती है । इसलिए ग्रीन हाउस का महत्व और अधिक बढ़ जाता है । ग्रीन हाउस 6 मि.मी. मल्टीवाल यूवीस्टेबिलाइज्ड पाली कार्बोनेट शीट से बना एक चैम्बर होता है । जिसमें प्रकाश तापक्रम , आर्द्रता आदि को नियंत्रित करने के लिए एक ऑटोमेटिक कन्ट्रोल पैनल लगा होता है । जिसकी मदद से हम अपनी आवश्यकतानुसार नियंत्रित करके पराजीनी फसलों को तैयार कर सकते हैं ।



ग्रीन हाउस में प्रयोग आने वाले उपकरण एवं खादें (Greenhouse equipment and fertilizers):


 

 ग्रीन हाउस में पराजीनी फसलों को तैयार करने के लिए निम्नलिखित उपकरण एवं खादें ( उर्वरक)  प्रयोग में लाते हैं :-

क ) उपकरण एवं औजार : तापक्रम मापने के लिए थर्मामीटर , स्प्रेयर , फावड़ा , खुरपी , हजारा , बाल्टी , टब , रबर पाइप आदि । 

ख ) रासायनिक एवं कार्यनिक खादे : उपजाऊ बलूई दोमट मिट्टी , गोबर की खाद ( एम.वाई.एम. ) , वर्मीकम्पोस्ट ( कंचुए की खाद ) , बर्मीकुलाइड कोलोपिट , डी.ए.पी. , यूरिया , गंधक एवं मल्टीन्यूट्रिएन्ट पाउडर आदि ।

गमलों का चुनाव करना

(Picking pots) :




ग्रीन हाउस में पराजीनी दलहनी फसलें तैयार करने के लिए जैसे - प्लास्टिक के गमले , मिट्टी के गमले एवं सीमेन्ट पा चीनी मिट्टी के गमले प्रयोग में लाये जा सकते हैं , लेकिन मिट्टी के गमले सर्वोत्तम होते हैं । ये पौषों के लिए पूर्णताः नमी बनाये रखते हैं । गमलों का चुनाव करते समय गमलों के आकार पर भी ध्यान देना चाहिये । अरहर के पौधों को लगाने के लिए 14-16 इंच के बड़े गमले एवं अन्य चना , मटर , मसूर आदि फसलों को लगाने के लिए 10-12 इंच के छोटे गमले प्रयोग में लाना चाहिये । 


मिट्टी तैयार करना एवं गमलों को भरना (Soil preparation and filling of pots):





तैयार मिट्टी को अच्छी तरह तोड़कर भुरभुरा बना लेना चाहिये । तत्पश्चात गमलों को भरने के लिए 1/2 भाग ( 50 % ) मिट्टी एवं 1/2 भाग ( 50 % ) गोबर की खाद + कोकोपिट + वर्मीकम्पोस्ट + बर्मोकुलाइड को समान अनुपात में मिलाकर मिश्रण तैयार कर लेना चाहिए । गमलों को भरते समय एक बात ध्यान में रखना चाहिए कि गमलों की तली में छिद्र जरूर होना चाहिये । उस छिद्र पर एक टूटे खपरैल का टुकड़ा रखकर , तैयार मिट्टी का मिश्रण भर देना चाहिये । इस प्रकार बुवाई के लिए गमले तैयार हो जाते हैं ।

गमलों में बुवाई करना

(Sowing in pots):




 इस प्रकार तैयार किये गये गमलों को चेम्बर के अन्दर पड़ी लोहे की रैकों पर क्रम बनाकर सीधी लाइन में रख कर गमलों में हल्का पानी दे देते हैं । दो या तीन दिन बाद जब गमलों में उचित नमी हो तो खुर्ण से गुड़ाई करके मिट्टी को भुरभुरा बना लेते हैं । तैयार गमलों में 1-1 बीज डालकर बुवाई कर देते है । गमलों में नमी बनाये रखने के लिए पालीथिन या पुआल से गमलों को ढक देना चाहिए । ऐसा करने से बीज अच्छी तरह एवं जल्दी उग आते हैं ।


सिंचाई एवं पौधों की देखभाल करना (Irrigation and caring for plants):


 

 गमलों में की गई पुवाई के एक सप्ताह बाद जब पौधे उगने लगे तो उन पर की गयी मालचिंग को हटा देना चाहिए । 4-5 दिन बाद हमारे से हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है । आवश्यकता अनुसार 2-3 दिन पाद के अन्तराल पर हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए । इस तरह ग्रीन हाउस में लगाये गये पौधों को नियमित देखभाल करनी पड़ती है । प्रतिदिन चैम्बरों को देखते रहना चाहिए , कि चैम्बर में लगे फैन , कूलिंग पैड , फागर सिस्टम ( यूमिडिटी फायर ) टोक से काम कर रहे है या नहीं । गमलों में उग रहे खरपतवारों को निकालते रहना चाहिये । यदि कोई बीमारी या बीट का आक्रमण होता है तो उससे संबंधित दवाओं का स्प्रे भी करना चाहिए ।

कटाई - मड़ाई एवं पौधों के अवशेषों को नष्ट करना (Harvesting - mowing and destroying plant residues):

 





परपरागण फसलों में फूल आने से पहले पौधों में सेल्पिग बैग लगा देने चाहिए , जिससे की उत्तम बीज प्राप्त किये जा सके । जब गमलों में लगाये गये पौधे की पतियों पूर्ण रूप से पक जाये तो पीयों को सावधानीपूर्वक कटाई करके रख लेना चाहिए । पौधों को पूर्ण रूप से सुखाकर बीजों को अलग कर लेना चाहिये । कटाई एवं मढ़ाई के उपरान्त , पौषों के अवशेषों को न तो बाहर फेकना है तथा न ही जलाना चाहिए । ऐसा करना बायोसेफ्टी नियम के खिलाफ है । अवशेषों को नष्ट करने के लिए हाइनीनिक कूड़ा निस्तारण करने वाली संस्थाये जैसे एम . पी . सी . ( मेडिकल पात्यूशन कन्ट्रोल ) से करना चाहिए ।

 सावधानियाँ (Precautions): 

ग्रीन हाउस में पराजीनी फसलों को तैयार

करने के लिए कुछ सावधानियाँ भी बर्तनी

चाहिए : 

1. ग्रीन हाउस में पराजनी फसलों को लगाने से

पहले चेम्बरों की अच्छी तरह साफ सफाई करा

लेनी चाहिए । 

2. विजली व पानी को पर्याप्त 24 घंटे व्यवस्था

होनी चाहिए । 

3. पराजीनी फसलों की बुवाई अलग - अलग

चैम्बर में करानी चाहिए । 

4. परपरागण फसलों पर सल्किंग बैग लगाने

चाहिए । 

5. प्रोन हाउस के चारों ओर अन्य कोई फसलें एवं

फूल - पत्तियों के पौधों को नहीं लगाना चाहिए । 

6. पीयों के अवशेषों को इधर - उधर नहीं फेंकना

चाहिए । इस तरह अच्छा प्रबन्धन करके पराजोनी

फसलों को तैयार कर सकते है ।


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ग्रीन हाउस में पराजीनी दलहनी फसलों का प्रबंधन (Management of transgenic pulses crops in greenhouse) | Agriculture | Green House | Pulses | Agriculture in India ! ग्रीन हाउस में पराजीनी  दलहनी फसलों का प्रबंधन (Management of transgenic pulses crops in greenhouse) | Agriculture | Green House | Pulses | Agriculture in India ! Reviewed by Abhishek Chaudhary on May 31, 2020 Rating: 5

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